Monday 5 December 2016

एक ही गौत्र में शादी करने से होते हैं ये भयंकर नुकसान, इसलिए शास्त्रों ने बताया है वर्जित

जयपुर. हिंदुओं में विवाह पद्धति के संबंध में कई प्राचीन परंपराएं मौजूद हैं। इनमें से एक है अपने गौत्र में शादी न करना। इसके अलावा मां, नानी और दादी का गौत्र भी टाला जाता है। ऐसा क्यों किया जाता है? वास्तव में इसके पीछे भी ऋषियों द्वारा विकसित किया गया वैज्ञानिक चिंतन और गौत्र परंपरा है।


गौत्र का तात्पर्य है कि अमुक व्यक्ति किस ऋषि का वंशज रहा है। विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप और अगस्त्य महान ऋषि हुए हैं। अगर कोई व्यक्ति किसी ऋषि का वंशज है तो वह उसी ऋषि के गौत्र में उत्पन्न कन्या से विवाह नहीं कर सकता।


शास्त्रों में भी ऐसे विवाह को वर्जित माना गया है। एक ही वंश में उत्पन्न लोगों का विवाह करना हिंदू धर्म में पाप माना जाता है। ऋषियों के अनुसार, गौत्र परंपरा का उल्लंघन कर विवाह करने से उनकी संतान में कई अवगुण और रोग उत्पन्न होते हैं।


इनमें प्रमुख हैं - शारीरिक विकृति, चर्म रोग, कुष्ठ, मस्तिष्क रोग, फेफड़ाें से संबंधित रोग, चंचलता, सत्कार्य से विमुख होना, उपद्रवी मनोवृत्ति आदि।


गौत्र परंपरा का संबंध मूलतः रक्त संबंधों से है। अन्य ग्रंथों में भी सगौत्र विवाह के दोष बताए गए हैं। आपस्तंब धर्मसूत्र के अनुसार, एक ही गौत्र में विवाह करने से संतान में अनेक दोष पैदा होते हैं। ये दोष सिर्फ शारीरिक नहीं होते, बल्कि चरित्र और मन से संबंधित दोष भी संतान में प्रविष्ट हो जाते हैं।


गौत्र को लेकर भी विभिन्न प्रांतों व जातियों में अलग-अलग मान्यताएं हैं। कहीं 4 गौत्र टाले जाते हैं तो किसी वंश में 3 गौत्र टालने का भी नियम है। इनके पीछे सदियों से चली आ रही परंपरा और ऋषियों का चिंतन है।

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