Friday 2 December 2016

इस एक चूक से मोदी हो सकते हैं फेल, ब्‍लैकमनी नि‍कालने का प्‍लान होगा बर्बाद (biggest loophole in black money recovery)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर की शाम एलान किया कि 500 रुपए और 1000 रुपए के नोटों को बंद किया जा रहा है। मार्केट में मौजूद मनी सर्कुलेशन में इन नोटों की हिस्सेदारी 86 फीसदी से ज्यादा है। सरकार ने कहा है कि इस कदम से ब्लैकमनी पर रोक लगाने में मदद मिल सकती है। यह भी माना जा रहा है कि अघोषित कैश रातोंरात बाहर निकल जाएगा। हालांकि, बीते दो हफ्ते में लोगों ने ब्लैकमनी को व्हाइट करने के लिए कई जुगाड़ निकाल लिए हैं। इसमें रियल एस्टेट में पैसा लगाने से लेकर दूसरे के अकाउंट में पैसा डालना तक शामिल है।

सरकार भी हर दिन ला रही है नियम
सरकार इन तरीकों पर रोक लगाने के लिए हर दिन नए नियम ला रही है। इसमें उंगलियों पर स्याही लगाने से लेकर इनकम टैक्स की छापामारी तक शामिल है। हालांकि, एक बड़े लूपहोल को छोड़ दिया गया है और वह है राजनीतिक पार्टियों में अघोषित पैसा।

ऐसे लोग आसानी से ब्लैकमनी को व्हाइट कर सकते हैं
लोग अपनी ब्लैकमनी पार्टी को अलग-अलग हिस्सों में डोनेट कर सकते हैं, प्रत्येक हिस्सा 20 हजार रुपए से कम होना चाहिए।  
इस तरह से किसी भी व्यक्तिके नाम पर  कई बार डोनेशन दिया जा सकता है
रीप्रेजेंटेशन ऑफ द पब्लिक एक्ट, 1951 (आरपी एक्ट) के मुताबिक, राजनीतिक पार्टियों को चुनाव आयोग को व्यक्तिगत या संगठनों की ओर से मिलने वाली 20 हजार रुपए से कम की राशि की रिपोर्ट देने की जरूरत नहीं है।
ऐसे में राजनैतिक दल या संगठन यह कह सकते हैं कि उनको यह पैसा किसी भी नाम से मिला है
एडीआर के मुताबिक, छह राष्ट्रीय पार्टियों को 2004 से 2012 के बीच 4,368.75 करोड़ रुपए अघोषित सोर्स से मिला है।
बैंक में जाकर पूरा पैसा पार्टी के अकाउंट में जमा करा सकते हैं। राजनीतिक पार्टियां को इनकम टैक्स में 100 फीसदी छूट दी गई है। यहां कोई टैक्स नहीं देना पड़ता है।
जमा अकाउंट को जब चाहे तब निकाल सकते हैं। इसे किसी भी नोट वैल्यू (100, 50 या 2000 रुपए के नोटों) में निकाला जा सकता है। यह पूरी तरह से व्हाइट होगा। पार्टियों को कहीं भी पैसा खर्च करने के लिए पूरी छूट है। राजनीतिक पार्टियों को राइट टू इंफॉर्मेशन एक्ट (आरटीआई) के तहत नहीं रखा गया है।
नियमों के मुताबिक, राजनीतिक पार्टियों को असेंबली इलेक्शन के 75 दिन के भीतर और लोकसभा चुनाव के 90 दिन के भीतर चुनाव आयोग को अपने खर्चोंं की स्टेटमेंट देनी पड़ती है। हालांकि, उनपर यह जिम्मेदारी नहीं है कि वह नॉन-इलेक्शन पीरियड के दौरान प्रशासनिक कार्यों पर खर्च किए पैसे की जानकारी दें।

No comments:

Post a Comment