Friday 10 February 2017

T20 में 72 गेंदों में कैसे जमाया तिहरा शतक, सामने आया असली सच


21 साल के छोरे ने टी20 मैंच में 72 गेंदों में 300 रन बनाकर इतिहास रच दिया, लेकिन इसके पीछे का असली सच तो कुछ और ही है। आप भी जानिए।
बात हो रही है, पानीपत के तहसील कैम्प के रहने वाले मोहित अहलावत की। मोहित टी20 मैच में तिहरा शतक बनाने वाले दुनिया के पहले बल्लेबाज बन गए हैं। यह वो कारनामा है, जो हर किसी के लिए मुमकिन नहीं है। दिल्ली के ललिता पार्क में खेली जा रही फ्रैंड्स प्रीमियर लीग के इस मैच में 72 गेंदों में 300 रन की नाबाद पारी खेली। उन्होंने 39 छक्के और 14 चौके जड़े।
पर क्या आप जानते हैं कि मोहित ने जिस मैदान पर यह कारनामा कर दिखाया वह इंटरनेशनल क्रिकेट ग्राउंट से काफी छोटा है। यही कारण है कि वे इतने रन बनाने में कामयाब रहे। इस मैदान की बाउंड्री सिर्फ 40 गज की थी जो कि अंतरराष्ट्रीय मैदान से छोटी है।
औसतन अंतरराष्ट्रीय मैदान की बाउंड्री की लंबाई लगभग 65 से 70 गज की होती है। मैदान में इनर सर्किल 30 गज का होता है, जिसमें पावरप्ले के हिसाब से 4 या 5 खिलाड़ी होते हैं।
बता दें कि मोहित ने 17 गेंदों में फिफ्टी बनाई। इससे पहले युवराज इंग्लैंड के खिलाफ महज 12 गेंद में अर्धशतक लगा चुके हैं। एक ओवर में सबसे ज्यादा 36 रन युवी के नाम। मोहित 34 रन बना सके। मोहित लगातार 5 छक्के लगा सके, जबकि युवी 6 छक्के लगा चुके हैं।
स्कोर बोर्ड के अनुसार, मोहित ने 39 छक्के और 14 चौके के अलावा 6 सिंगल और 3 डबल भी लिए। इस तरह स्कोर 302 रन होना था। स्कोर बोर्ड पर 300 रन ही लिखे हैं।
मोहित का परिवार मूलत: पानीपत के गांव बबैल गांव का रहने वाला है। पिता पवन अहलावत टेम्पो चलाते हैं। मां एक छोटे स्कूल में टीचर हैं। मोहित ने क्रिकेट को तीन साल पहले ही गंभीरता से लेना शुरू किया था। प्रदर्शन इतना शानदार रहा कि उन्हें बड़ी लीग के लिए चुना जाने लगा। मोहित अपनी इस कामयाबी का श्रेय अपने पिता पवन अहलावत को देते हैं।
मोहित के पिता पवन अहलावत ने बताया कि उन्हें क्रिकेट खेलने का जुनून था। स्कूल स्टेट क्रिकेट प्रतियोगिता में विकेट कीपर व बल्लेबाजी में बेहतरीन प्रदर्शन किया। बाद में घर की आर्थिक स्थित कमजोर होने के कारण दसवीं के बाद पढ़ाई व क्रिकेट छोड़ना पड़ा। परिवार चलाने के लिए टेंपो चलाने लगे। शौकिया तौर पर क्रिकेट जारी रखा। बेटे मोहित को भी मैदान में साथ ले जाते थे। मोहित ने इच्छा जताई कि वह भी विकेटकीपर और बल्लेबाज बनना चाहता है।
पवन बताते हैं कि सैंट मैरी स्कूल में मोहित का दाखिला कराया तो उसका पढ़ाई में कम, क्रिकेट में ज्यादा मन लगता था। शिक्षक ने कह दिया था कि यह पढ़ाई में अच्छा नहीं है, इसे तो क्रिकेटर बना दीजिए। उन्होंने मोहित में अपना अक्स देखा और दसवीं के बाद मोहित को 2012 में बहादुरगढ़ बालाजी क्रिकेट एकेडमी में छोड़ दिया। वहां मोहित को खेलते देख क्रिकेटर गौतम गंभीर के कोच संजय भारद्वाज प्रभावित हुए और वे उसे दिल्ली के लाल बहादुर क्रिकेट अकादमी ले गए।
पवन ने बताया कि उनके दोस्त बबैल के रविंद्र ने फोन कर बताया कि मोहित ने बड़ी पारी खेली है। उन्होंने मोहित को फोन किया तो वह बोला कि मैं ठीक खेला हूं। पापा मैंने कर दिखाया है। अब रणजी में अच्छा खेलकर टीम इंडिया में जगह बनानी है। मोहित अहलावत दिल्ली की ओर से तीन रणजी खेल चुके हैं। मोहित का रणजी के लिए ऋषभ पंत से चयन हो गया था। तीन मैच भी खेले, लेकिन चल नहीं पाया। सफलता के लिए भाग्य के साथ मेहनत बहुत जरूरी है।

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